अंगदान-महादान है. करीब 13 साल पहले इस महादान का संकल्प लेने वाले 90 वर्षीय सेना के रिटायर्ड अधिकारी ने शुक्रवार को इसे पूरा किया. भारतीय सेना (Indian Army) के जांबाज अधिकारी शंकरसिंह नाथावत (Shankar Singh Nathawat) ने अपनी जीवन संगनी (Wife) की पार्थिव देह को जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज ( SMS Medical College) को सुपुर्द कर दिया. देहदान (Body donation) के लिए संकल्प लेने वाले इस दंपत्ति का मकसद (Motive) सिर्फ एक है कि मरने के बाद भी उनके शरीर का हर हिस्सा राष्ट्र निर्माण (Nation building) में अपना योगदान दे.
2007 में साथ साथ देहदान का संकल्प लिया था
देश के विभाजन से लेकर 1975 तक की सभी लड़ाइयों में अहम भूमिका निभा चुके शंकर सिंह नाथावत ने 65 वर्षों तक जीवन के हर सुख-दुख में साथ देने वाली अपनी धर्म पत्नी अर्चना कंवर को शुक्रवार को अंतिम विदाई दी. शंकर सिंह नाथावत और अर्चना कंवर ने 13 साल पहले 2007 में साथ साथ देहदान का संकल्प लिया था. 85 वर्षीय अर्चना कंवर का शुक्रवार को अलसुबह निधन होने के बाद उन्होंने अपनी धर्म पत्नी के संकल्प और उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करने में जरा भी हिचक नहीं की. शंकर सिंह के लिए 65 साल तक हम कदम बनकर साथ रहने वाली अर्चना कंवर की विदाई आसान नहीं थी. लेकिन असहनीय दुख को पीकर उन्होंने अपने जीवन साथी की अंतिम इच्छा को पूरा करने करते हुए उनकी पार्थिव देह को सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज को दान में दे दी.
1955 में जीवन साथी बने थे
देहदान का संकल्प लेने वाले शंकर सिंह नाथावत और अर्चना कंवर के जीवन का सफर राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत है. 1930 में जन्मे शंकर सिंह और अर्चना कंवर 1955 में जीवन साथी बने थे. वैसे शंकर सिंह 15 वर्ष की उम्र में ही राष्ट्रीय संग्रामों में कूद पड़े थे, लेकिन 1946 में उन्होंने भारतीय सेना में लोकेटिंग रेजीमेंट में उपस्थिति दर्ज करवाकर राष्ट्र प्रेम की ज्योति मजबूती दे दी. फिर सेना में कैरियर की शुरुआत में ही भारत-पाक विभाजन के दौर से सामना हुआ, जिससे उनकी राष्ट्र भावना की अलख तेज हो गई.कई युद्धों में भाग ले चुके हैं शंकर सिंहउसके बाद भारत पाक युद्ध में कश्मीर के नौसेरी में दुश्मन के सामने कमान संभालने का मौका मिला. वहीं भारत-चाइना युद्ध में ये तवांग पर किए गए हमले में छाए रहे. पाकिस्तान से बांग्लादेश को मुक्त कराने के अभियान में ये दंपत्ति ढाका तक पहुंचे. यहीं नहीं गोवा मुक्ति संग्राम से लेकर अन्ना हजारे के साथ संग्राम में भी शंकर सिंह ने अपना अहम रोल अदा किया है.
नजदीकी रिश्तेदारों और परिजनों को भी समझाया
शंकर सिंह नाथावत और अर्चना कंवर वर्ष 2007 में सबसे पहले खुद देहदान के लिए तैयार हुए. देहदान का संकल्प लेने के बाद उन्होंने इसके महत्व को अपने नजदीकी रिश्तेदारों और परिजनों को भी समझाया. उनका मकसद इस संदेश जन-जन तक पहुंचा कर जरूरतमंद को नया जीवन देने का है.